राजस्थान के संत
- राजस्थान में राम, कृष्ण, शिव तथा दुर्गा पूजा पर आधारित अनेक धार्मिक संप्रदायों का जन्म एवं विकास हुआ है।
- राजस्थान में रामस्नेही, निम्बार्क, पाशुपत, लालदासी, चरणदासी, दादूपंथ, निरंजनी, विश्नोई, रामानुज, जसनाथी, नवल एवं वल्लभ संप्रदाय प्रमुख हैं। विष्णु की पूजा करने वाले वैष्णव, शिव की पूजा करने वाले शैव तथा शान्ति की आराधना करने वाले शाक्त सम्प्रदाय में शामिल किए जाते हैं।
- उपासना पद्धति के आधार पर इन्हें सगुण व निर्गुण संप्रदाय में बाँटा जा सकता है।
निर्गुण भक्ति संप्रदाय | सगुण संप्रदाय |
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संत पीपा
- 1425 ई. में गागरोन के खींची राजपूत शासक संत पीपा का जन्म हुआ था।
- इनका वास्तविक नाम प्रतापसिंह खींची था।
- टोडा के राजा शूरसेन ने संत पीपा से प्रभावित होकर अपना पूरा धन साधू-संतों में बाँट दिया।
- संत पीपा रामानन्द के शिष्य थे। संत पीपा निर्गुण भक्ति के संत थे।
- दर्जी समुदाय के लोग इन्हें अपना आराध्य मानते हैं।
- इन्होंने परंपरागत भेदभावों और ऊँच-नीच का विरोध करते हुए प्राणी मात्र की समानता का समर्थन किया था।
- इनका मुख्य मंदिर समदड़ी (बालोतरा) में स्थित है।
- संत पीपा की गुफा टोडा (टोंक) में बनी हुई है।
- गागरोन (झालावाड़) में कालीसिंध नदी के तट पर इनकी छतरी बनी हुई है।
- चैत्र पूर्णिमा को इनका मेला लगता है।
- संत पीपा के ग्रंथ पीपापरची, चितावनी, पीपा की कथा है।
संत धन्ना
- संत धन्ना का जन्म 1415 ई. में धुवन गाँव (टोंक) में हुआ था।
- इनका मुख्य मंदिर बोरानाडा (जोधपुर) में स्थित है।
- जाट जाति के संत धन्ना रामानंद के शिष्य थे।
- राजस्थान में धार्मिक आन्दोलन का शुरू करने का श्रेय संत धन्ना को ही जाता है।
- धन्ना गृहस्थ थे और कृषि करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे।
- गुरू रामानंद के प्रभाव से वे निर्गुण उपासक हो गए।
- संत धन्ना के जीवन की अनेक चमत्कारिक घटनाओं का वर्णन प्रियदास द्वारा रचित भक्तमाल में मिलता है।
संत जाम्भोजी
- विश्नोई संप्रदाय के प्रवर्तक संत जाम्भोजी का जन्म पीपासर (नागौर) में 1451 ई. में हुआ था।
- जाम्भोजी पँवार वंशीय राजपूत लोहटजी एवं हांसादेवी के पुत्र थे। जाम्भोजी का बचपन का नाम धनराज था।
- 1483 ई. में इनके माता-पिता की मृत्यु के उपरांत इन्होंने गृह त्याग दिया था।
- ब्रह्मचारी रहते हुए समराथल (बीकानेर) में हरिचर्चा और सत्संग में समय व्यतीत करने लगे।
- सोलह वर्ष की आयु में इन्हें सद्गुरू का साक्षात्कार हुआ। इन्होंने गुरू गोरखनाथ से दीक्षा ली थी।
- 1485 ई. में समराथल में ही इन्होंने अपने अनुयायियों को 29 सिद्धान्तों का पालन करने का आदेश दिया था।
- इन्हीं सिद्धान्तों का पालन करने वाले अनुयायियों को विश्नोई (बीस-नौ) कहलाए।
- इनका उपदेश स्थल साथरिया कहलाते थे।
- 1536 ई. में लालासर गाँव (बीकानेर) में इन्होंने अपना शरीर त्याग दिया था।
- तालवा गाँव के पास इनकी समाधि स्थल है।
- यह स्थान मुकाम (बीकानेर) के नाम से जाना जाता है, जहाँ इनके समाधि मंदिर का निर्माण किया गया।
- प्रतिवर्ष फाल्गुन और आश्विन की अमावस्या को यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है।
- जाम्भोजी को विष्णु का अवतार माना जाता है।
- जम्भ संहिता, जम्भ सागर शब्दावली, विश्नोई धर्मप्रकाश तथा जम्भ सागर आदि जाम्भोजी द्वारा रचित ग्रंथ है।
- निम्नलिखित स्थानों पर जाम्भोजी के देवालय स्थित हैं.
- पीपासर (नागौर)
- मुकाम (बीकानेर)
- लालासर (बीकानेर)
- जाम्भा (फलौदी)
- जागूल (बीकानेर)
- रामड़ावास (जोधपुर ग्रामीण)
- मारवाड़ के जोधा व इनके पुत्र बीका जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे।
- जांभोजी सिकन्दर लोदी के समकालीन थे।
- जांभोजी के कहने सिकन्दर लोदी ने गौवध बन्द कर दी थी।
- बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर शिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी।
- जाम्भोजी ने सभी धर्मों के मूलभूत सिद्धांतों का समन्वय करके उन्हें एकता के सूत्र में बाँधा था।
- इन्होंने दान, तीर्थ आदि का विरोध किया तथा समाज में धार्मिक पवित्रता पर जोर दिया था।
- इनकी रचनाओं ने हिन्दू तथा मुसलमानों में समन्वय की भावना उत्पन्न की थी।
- इनके जीवन तथा विचारों पर आचरण करने वाले विश्नोई कहलाते हैं।
- जीव-कल्याण तथा वृक्षों की रक्षार्थ प्राणोत्सर्ग करना विश्नोई सम्प्रदाय का इतिहास रहा है।
- पर्यावरण के प्रति लगाव के कारण जाम्भोजी को पर्यावरण वैज्ञानिक भी कहा जाता है।
- हरे वृक्ष नहीं काटना, भांग व शराब का सेवन न करना, माँस, अफीम नहीं खाना, नीले वस्त्र नहीं पहनना इनकी शिक्षाएँ थी।
संत जसनाथ
- जसनाथी संप्रदाय के संस्थापक संत जसनाथजी का जन्म 1482 ई. में कतरियासर (बीकानेर) में हुआ था।
- संत जसनाथ जाणी जाट हम्मीरजी और रूपादे के पुत्र थे।
- कतरियासर जसनाथजी संप्रदाय का मुख्य साधना तथा पूज्य स्थान है।
- यहाँ वर्ष में तीन बार आश्विन शुक्ल सप्तमी, माघ शुक्ल सप्तमी और चैत्र शुक्ल सप्तमी को मेला लगता है।
- बारह वर्ष की आयु में इन्होंने गुरू गोरखनाथ से दीक्षा ली थी।
- इन्होंने गोरखमालिया (बीकानेर) स्थान पर 12 वर्ष तक साधना की और लोगों को जीव दया, आत्मचिंतन का उपदेश दिया था।
- 1500 ई. में गोरखमालिया में इनकी भेंट संत जाम्भोजी से हुई थी।
- 18वीं शताब्दी में सिद्ध रामनाथजी ने जसनाथजी के 36 नियमों का प्रतिपादन किया है।
- रामनाथजी द्वारा रचित यशोनाथ पुराण जिसे जसनाथी संप्रदाय की बाईबिल कहा जाता है।
- जसनाथी संत रूस्तमजी को औरंगजेब ने नगाड़ा एवं निशान देकर सम्मानित किया था।
- इनके अनुयायी गले में काली ऊन के धागे पहनते हैं।
- इनके अनुयायी मोरपंख व जाल वृक्ष को पवित्र मानते हैं।
- इनके अनुयायियों द्वारा अग्नि नृत्य किया जाता है।
- इनकी पत्नी कालदे की भी पूजा की जाती है।
- सिकन्दर लोदी ने इन्हें कतरियासर में भूमि दान की थी।
- इन्होंने 24 वर्ष की आयु में 1506 ई. में कतरियासर में समाधि ली थी।
- इनके उपदेश सिंधूदड़ा व कोंडा नामक ग्रंथ में संगृहीत है।
- संत जसनाथ निर्गुण व निराकार ईश्वर के उपासक थे।
- बमलूसर, लिखमादेसर, पूनरासर, मालासर, पाँचला सिद्धा (नागौर) आदि इनके अन्य केंद्र है।
- सन्तों के समाधि स्थल को बाडी (84 बाडियाँ प्रसिद्ध) कहते हैं।
- इन्होंने लूणकरण (बीकानेर के शासक) को राजा बनने का आशीर्वाद दिया था।
- लालनाथजी, चौखनाथजी और सवाईदास जी आदि इस सम्प्रदाय के प्रमुख संत थे।
संत सुन्दरदास छोटे
- दादूपंथी संत सुंदरदास का जन्म 1596 ई. में दौसा में हुआ।
- इनके पिता का नाम परमानन्द तथा माता का नाम सती था।
- वे खण्डेलवाल वैश्य थे।
- दादू के दौसा आगमन पर वे दादू के शिष्य बन गए थे।
- सुंदरदास ने दादू पंथ के दार्शनिक सिद्धांतों को साहित्यिक रचनाओं में पद्यबद्ध किया है।
- इन्होंने 42 ग्रंथों की रचना की। सुन्दर विलास, सुंदरदासजी छोटे ने ज्ञानसमुद्र, सुन्दरसागर आदि ग्रंथ लिखे थे।
- इनका देहांत 1707 ई. में सांगानेर में हुआ था।