राजस्थान कला व संस्कृति – राजस्थान के मेले Part – 2
मुकाम का जाम्भेश्वर मेला
विश्नोई सम्प्रदाय के संस्थापक जाम्भोजी के समाधि स्थल मुकाम (बीकानेर) में प्रतिवर्ष दो बार फाल्गुन कृष्णा अमावस्या एवं आश्विन कृष्णा अमावस्या को मेले लगते हैं। जाम्भोजी के मुस्लिम अनुयायी भी इस मेले में भाग लेने पहुँचते हैं।
मरु मेला
जैसलमेर में राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा माघ महीने (फरवरी) में प्रतिवर्ष मरु मेले का आयोजन किया जाता है।
मेले में मरुश्री और साफा बाँधने की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।
रस्सी खींच और मूँछ प्रतियोगिताएँ, ऊँट दौड़, कैंट का पोलो खेल आदि मेले के आकर्षण हैं।
मेले में गैर और अग्नि नृत्य का आयोजन भी किया जाता है।
श्रीमल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा
तिलवाड़ा (बालोतरा) में लूनी नदी के तट पर मल्लीनाथ की स्मृति में चैत्र कृष्णा एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तक पशु मेले का आयोजन किया जाता है। राज्य के कई क्षेत्रों से व्यापारी यहाँ पशुओं के क्रय-विक्रय के लिए आते हैं।
पशु मेले में राठी, थारपारकर, कांकरेज, साँचौर एवं मालाणी नस्ल की गायों की बिक्री होती है।
रामदेव पशु मेला, नागौर
राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा नागौर में (मानसर गाँव) प्रतिवर्ष माघ शुक्ला प्रतिपदा से पूर्णिमा तक मेले का आयोजन किया जाता है।
यह पशुमेला गाय, बैल, ऊँट और घोड़ों के क्रय-विक्रय के लिए प्रसिद्ध हैं।
यहाँ के नागौरी बैल पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। चार दिन के इस मेले में अनेक प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।
इस दौरान ऊँटों की दौड़ तथा मुर्गों और सांडों की लड़ाई आयोजित की जाती है।
मेले के दौरान पर्यटन विकास निगम द्वारा पर्यटन गाँव की स्थापना की जाती है।
चन्द्रभागा मेला
झालरापाटन (झालावाड़) में कार्तिक पूर्णिमा को चन्द्रभागा नदी तट पर पशु मेले का आयोजन किया जाता है।
मालवी नस्ल के पशुओं के क्रय-विक्रय के लिए यह मेला प्रसिद्ध है।
चंद्रभागा पशु मेले को हाड़ौती का सुरगा मेला कहा जाता है।
कपिल मुनि का मेला
सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि की तपोस्थली कोलायत (बीकानेर) में कार्तिक पूर्णिमा का आयोजन होता है। कार्तिक माह को यहाँ स्थित झील के तट पर मेले में इस पवित्र सरोवर में स्नान करने से मोक्ष प्राप्त होता है।
इस अवसर पर कपिल मुनि की पूजा होती है। मेले के अवसर पर पशुओं की खरीद-फरोख्त भी होती है।
सरोवर में पूर्णिमा की रात्रि का दीपदान महोत्सव दर्शनीय होता है।
केसरियाजी का मेला
उदयपुर जिले के धुलेव गाँव में ऋषभदेव का भव्य मंदिर है, जहाँ चैत्र कृष्णा अष्टमी को विशाल मेला लगता है।
मेले में श्वेताम्बर-दिगम्बर जैन, वैष्णव, शैव, भील व मुस्लिम सभी सम्प्रदायों के श्रद्धालु पहुँचते हैं।
ऋषभदेव की मूर्ति काले पत्थर की होने से भील उन्हें कालाजी कहते हैं।
ऋषभदेव की पूजा में केसर का विशेष प्रयोग होने से इन्हें केसरियाजी भी कहा जाता है।
कानन मेला
बालोतरा के कानन में बसन्त ऋतु में कानन मेला आयोजित होता है। गैर नृत्य इस मेले का मुख्य आकर्षण है।
वीर तेजाजी मेला, परबतसर
डीडवाना-कुचामन जिले के परबतसर में लोकदेवता तेजाजी की स्मृति में भाद्रपद शुक्ल दशमी को मेला आयोजित होता है।
परबतसर में तेजाजी का मंदिर है, जहाँ जाट समुदाय बड़ी संख्या में पहुँचता है।
खाटूश्यामजी मेला
सीकर जिले में खाटूश्यामजी नामक गाँव में श्रीकृष्ण के ही एक स्वरूप श्रीश्यामजी के मंदिर में खाटूश्यामजी मेला लगता है।
शीश के दानी के रूप में विख्यात श्रीश्याम मंदिर में फाल्गुन शुक्ल दशमी से द्वादशी तक वार्षिक मेला लगता है।
मंदिर के निकट श्याम बगीचा व श्याम कुण्ड भी दर्शनीय है।
गौतमेश्वर का मेला (भूरिया बाबा)
सिरोही जिले में पोसालिया नदी के किनारे गौतमेश्वर में चैत्र शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक यह मेला लगता है।
यह प्रमुखतः मीणा समाज का मेला है, जिसमें वह अपने कुल देवता गौतम-गुआ की पूजा करते हैं।
मीणा समाज मृतकों की अस्थियाँ भी यहाँ विसर्जित करते हैं।
प्रतापगढ़ जिले के अरनोद में सूकड़ी नदी के तट पर गौतमेश्वर महादेव मंदिर है। यहाँ वैशाख मास में मेला लगता है।
घोटिया आंबा मेला
बाँसवाड़ा जिले की बागीदौरा के बारीगामा ग्राम पंचायत क्षेत्र में आदिवासियों को तीर्थ स्थली घोटिया आंबा स्थित है।
यहाँ चैत्र कृष्णा एकादशी से अमावस्या (अमावस्या पर मुख्य मेला) तक मेला लगता है।
बेणेश्वर के पश्चात यह आदिवासियों का दूसरा बड़ा मेला है।
ऐसी मान्यता है कि पाण्डव अपने आज्ञातवास के दौरान कुछ दिन यहाँ ठहरे थे।
यहाँ पाण्डवों के नाम पर पाण्डव कुण्ड है, जहाँ लोग अपने परिजनों की अस्थियाँ विसर्जित करते हैं।
रामदेवजी का मेला
जैसलमेर जिले के पोकरण तहसील के रामदेवरा (रूणेचा) गाँव में भाद्रपद माह में लोकदेवता रामदेवजी का मेला लगता है।
साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक रामदेवजी के इस मेले में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों से श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए पैदल आते हैं। इसे मारवाड़ का कुंभ कहा जाता है।
चारभुजा का मेला
राजसमंद जिले के गढ़बोर नामक गाँव में जो ‘गढ़बोर चारभुजा के नाम से विख्यात है, भगवान श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर है।
यहाँ भाद्रपद शुक्ल एकादशी मेला लगता है।
गोगामेड़ी का मेला
हनुमानगढ़ जिले में गोगामेड़ी नामक स्थान पर भाद्रप्रद कृष्ण नवमी को गोगाजी का मेला लगता है।
इस मेले में राजस्थान के विभिन्न भागों, हरियाणा, उत्तरप्रदेश तथा पंजाब से भी श्रद्धालु आते हैं।
बादशाह मेला
व्यावर जिले में चैत्र कृष्णा प्रतिपदा (होली के दूसरे दिन) को बादशाह का मेला लगता है।
इस मेले में बादशाह की सवारी निकाली जाती है।
पार्श्वनाथ का मेला
नागौर जिले के मेड़ता सिटी के निकट फलौदी गाँव में आश्विन मास में पार्श्वनाथ का मेला लगता है।
बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालुओं के साथ हिन्दू श्रद्धालु भी इस मेले में भाग लेते हैं।
शिवाड़ मेला
सवाई माधोपुर जिले में ईसरदा के पास शिवाड़ मंदिर में स्थापित शिवलिंग की 12वें ज्योर्तिलिंग की मान्यता है।
इन्हें घुश्मेश्वर महादेव भी कहा जाता है। यहाँ फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी (महाशिवरात्री) को मेला लगता है।
माता कुण्डलिनी का मेला
चित्तौड़गढ़ जिले के राशमी में कार्तिक माह में माता कुण्डलिनी का मेला लगता है।
डोलमेला
बारों में डोल तालाब के तट पर चैत्र शुक्ल एकादशी (जलझूलनी एकादशी) को डोल मेला लगता है।
बाबू महाराज का मेला
धौलपुर जिले के बाड़ी में चम्बल नदी के तट पर डांग क्षेत्र में बाबू महाराज का मेला भादप्रद शुक्ला द्वितीया को लगता है।
श्रद्धालु इन्हें लोक देवता के रूप में पूजते हैं। भाद्रपद शुक्ला बाबूदूज के रूप में मनाई जाती है।
देश भर से कुष्ठ रोगी भी यहाँ रोग मुक्ति के लिए आते हैं।
गलियाकोट का उर्स
डूंगरपुर जिले के गलियाकोट नामक स्थान पर दाऊदी बोहरा समुदाय द्वारा सैय्यद फखरूद्दीन की दरगाह पर मोहर्रम की 27 वीं तारीख को उर्स का आयोजन किया जाता है। यह दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय की आस्था का प्रमुख केन्द्र है।
चौथमाता का मेला
सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा में माघ कृष्णा चतुर्थी को चौथ गाता का मेला आयोजित किया जाता है।
बलदेवराम पशु मेला, मेड़ता
नागौर के मेड़ता में चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से पूर्णिमा तक किसान नेता बलदेवराम मिर्धा की स्मृति में पशु मेला आयोजित होता है।
इस मेले में मुख्यतः नागौरी बैलों का क्रय-विक्रय होता है।
खेजड़ली मेला
दुनिया का एकमात्र वृक्ष मेला राजस्थान के जोधपुर ग्रामीण जिले के खेजड़ली ग्राम में भाद्रपद शुक्ल दशमी को लगता है।
यह वृक्ष मेला विक्रम संवत 1730 में वृक्षों के लिए शहीद हुए 363 बिश्नोई पुरुष और स्त्रियों की याद में लगता है।
यह विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला है। यहाँ पर आने वाले सभी लोग पर्यावरण संरक्षण की सीख लेते हैं।
सुईया मेला
बाड़मेर के चोहटन में पौष अमावस्या को सुईया मेला आयोजित मेला चार वर्ष में जसवन्त पशु मेला वर्ष में एक बार लगता है।
जसवन्त पशु मेला
भरतपुर में राजा जसवंतसिंह की याद में अश्विन शुक्ल पंचमी से चतुदर्शी तक जसवंत पशु मेला लगता है।
सारणेश्वर पशु मेला
सिरोही में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से दशमी तक सारणेश्वर पशु मेला लगता है।
मातृकुण्डिया मेला
चित्तौड़गढ़ के राश्मी में चन्द्रभागा नदी के किनारे प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा को मातृकुण्डिया का मेला लगता है।
मातृकुण्डिया को राजस्थान का हरिद्वार कहा जाता हैं।