राजस्थान के संप्रदाय

निम्बार्क सम्प्रदाय

  • सलेमाबाद (अजमेर) में निम्बार्क सम्प्रदाय के प्रवर्तक परशुराम देव थे।
  • निम्बार्क सम्प्रदाय के अनुयायी राधाजी को भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी मानते है।
  • सलेमाबाद में भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) के दिन मेला लगता है।

वल्लभ सम्प्रदाय

  • वल्लभ सम्प्रदाय को पुष्टिमार्गी/रूद्र सम्प्रदाय भी कहा जाता है।
  • वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी भगवान श्रीकृष्ण के बालस्वरूप की पूजा करते है।
  • इस सम्प्रदाय के मंदिरों को हवेली कहा जाता है। यहाँ गाये जाने वाली संगीत को हवेली संगीत कहा जाता है।
  • किशनगढ़ का राजा सावन्तसिंह वल्लभ सम्प्रदाय का अनुयायी था तथा उसने अपना नाम बदलकर नागरीदास रख लिया था।
  • मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के पीछे दीवार पर अथवा कपड़े के पर्दे पर कृष्ण लीलाओं के चित्र बनाएँ जाते है, जिसे पिछवाई कहा जाता है।
  • राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय के पाँच मुख्य केंद्र है-
  1. मथुरेश जी कोटा
  2. श्रीनाथजी सिहाड़ (नाथद्वारा, राजसमंद)
  3. द्वारिकाधीश कांकरोली (राजसमंद)
  4. मदनमोहन कामां (डीग)
  5. गोकुलचंद कामां (डीग)

रामस्नेही संप्रदाय

  • रामस्नेही संप्रदाय के प्रवर्तक संत रामचरणजी थे।
  • इन्होंने 1760 ई. के लगभग शाहपुरा में रामस्नेही संप्रदाय की स्थापना की।
  • इस संप्रदाय के संत गुलाबी रंग की चादर धारण करते हैं।
  • सांसारिक जीवन से दूर रहकर भिक्षा से अपना जीवन चलाते हैं।
  • रामस्नेही मूर्तिपूजा नहीं करते हैं।
  • रामस्नेही संप्रदाय निर्गुण भक्ति में विश्वास रखता है।
  • इस संप्रदाय के मंदिर को रामद्वारा कहा जाता है।
  • होली के अगले दिन शाहपुरा में रामस्नेही संप्रदाय का फूलडोल महोत्सव (चैत्र) आयोजित होता है।
  • जैमलदास को सिंहथल और खेड़ापा शाखा का आदिआचार्य कहा जाता है।
  • रामस्नेही संप्रदाय की निम्नलिखित चार शाखाएँ है-
  1. शाहपुरा – रामचरणजी
  2. रैण (नागौर) दरियावजी
  3. सिंहथल (बीकानेर)- हरिरामदासजी
  4. खेड़ापा (जोधपुर ग्रामीण) – रामदासजी

गौडीय संप्रदाय

  • गौडीय संप्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु (1485-1533 ई.) थे।
  • चैतन्य ने बंगाल में कृष्णभक्ति को एक आंदोलन का रूप दिया, जिसने बाद में एक संप्रदाय का रूप ले लिया।
  • ब्रजप्रदेश में इस संप्रदाय के गोस्वामी गौड प्रदेश (बंगाल) से आए थे।
  • इसलिए ब्रज प्रदेश में यह संप्रदाय गौडीय संप्रदाय कहलाया था।
  • आमेर के शासक मानसिंह भी गौड़ीय संप्रदाय के रूपगोस्वामी से प्रभावित थे।
  • मानसिंह ने 1593 ई. में वृन्दावन में गोविन्ददेवजी का लाल पत्थर का मंदिर बनवाया।
  • 1713 ई. में सवाई जयसिंह ने रूपगोस्वामी के सेव्य राधा गोविन्द को आमेर में कनक वृंदावन में स्थापित किया था।
  • 1735 ई. में गोविन्ददेवजी को कनक वृन्दावन से लाकर राजमहलों में मंदिर बनवाकर स्थापित किया गया।
  • जयपुर राजवंश की इन पर काफी श्रद्धा थी।
  • जयपुर में गौडीय संप्रदाय की अन्य कृष्ण प्रतिमाएँ राधादामोदर, राधाविनोद, गोपीनाथ आदि भी मंदिर बनाकर स्थापित की गई।
  • गौडीय संप्रदाय की ही मदनमोहन की प्रतिमा करौली में स्थापित की
  • वर्तमान में भी जयपुर, करौली और सवाई माधोपुर में इस संप्रदाय का प्रभाव है।
  • गौडीय संप्रदाय में भी कृष्ण को ही परब्रह्म माना गया है। इन मंदिरों में राधा कृष्ण की युगल मूर्ति की पूजा की जाती है।

पशुपत सम्प्रदाय/लकुलीश

  • शैव सम्प्रदाय के अन्तर्गत पाशुपत मतावलम्बी लकुलीश को शिव का 28वाँ एवं अंतिम अवतार मानते हैं।
  • राजस्थान में पाशुपत सम्प्रदाय का प्रमुख स्थान उदयपुर के एकलिंगजी (कैलाशपुरी) में है।
  • यह मंदिर बाप्पा रावल द्वारा बनवाया गया। इसमें काले पत्थर की चतुर्मुखी शिव की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है।
  • एकलिंगजी मेवाड़ राजवंश के इष्टदेव हैं।
  • मेवाड़ महाराणा एकलिंगजी को मेवाड़ का शासक और स्वयं को उनका दीवान मानकर शासन करते थे।

नाथ पंथ

  • शैव मत का ही एक अन्य रूप नाथ पंथ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
  • जोधपुर के शासक मानसिंह ने नाथ पंथ को आश्रय दिया था।
  • इस पंथ को एक गद्दी महामंदिर (जोधपुर) में स्थापित की गई है।
  • नाथपंथी साधु भगवा वस्त्र और ऊँची काली टोपी पहनते हैं तथा कान छिदवाते हैं।

कापालिक संप्रदाय

  • भैरव को शिव का अवतार मानकर उपासना करने वाला संप्रदाय कापालिक संप्रदाय कहलाता है।
  • तंत्र-मंत्र, साधना व भस्म आदि लगाकर कापालिक साधु एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते रहते हैं।

शाक्त संप्रदाय

  • शक्ति पूजा (दुर्गा) करने वाले शाक्त मतावलम्बी कहलाते हैं।
  • यह सम्प्रदाय सामरिक जीवन से जुड़ा हुआ है।
  • राजस्थान के शासकों ने शक्ति को अपनी आराध्य देवी माना है।
  • युद्ध करने जाते समय और वापिस लौटते समय वे देवी की पूजा करते थे।
  • जय माताजी उनका युद्धघोष होता था।

तेरापंथ संप्रदाय

  • श्वेताम्बर जैन आचार्य आचार्य भिक्षु स्वामी (भीखणजी) का जन्म मारवाड़ के कंटालिया ग्राम में हुआ।
    ये 1751 ई. में आचार्य रघुनाथ जी के सम्प्रदाय (जैन श्वेतांबर स्थानकवासी संप्रदाय) में दीक्षित हुए।
  • इन्होंने 13 साधु, 13 ही सामायिक करने वाले श्रावकों के साथ 1760 में जैन श्वेताम्बर के तेरापंथ संप्रदाय की स्थापना की।
  • ये इस संप्रदाय के प्रथम आचार्य बने।

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती

  • ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म संजरी (सिस्तान, ईरान) में हुआ था।
  • मोहम्मद गौरी के आक्रमण के दौरान मोइनुद्दीन चिश्ती भारत आए थे।
  • इनका मुख्य केन्द्र अजमेर (राजस्थान) में है।
  • इनका उर्स रज्जब की एक से छह तारीख तक लगता है।
  • शेख इब्राहिम कंदोजी नामक एक संत (मजजून) से प्रभावित होकर सांसारिक जीवन त्याग दिया था।
  • कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य थे।
  • ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के गुरू शेख उस्मान हारूनी थे।
  • चिश्ती के अनुसार जो नदी के समान दानी, सूर्य के समान दयालु एवं भूमि के समान नम्र है वहीं अल्लाह का मित्र है।
  • उनकी पुत्री बोबी हाफिज जमाल भी एक उच्च कोटि की आध्यात्मिक महिला थी, जिसकी मजार ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मज़ार के पास ही बनी हुई है।
  • ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में बुलन्द दरवाजे का निर्माण महमूद खिलजी ने करवाया।
  • मुगल बादशाह अकबर यहाँ 14 बार आया था तथा उसने दरगाह को 18 गाँव भेंट किए थे।
  • मेवाड़ महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने इस दरगाह को चार गाँव दान में दिए थे।
  • जोधपुर महाराजा अजीतसिंह ने इस दरगाह भूमि अनुदान दिया था।

नरहड़ पीर

  • नरहड़ पीर का मुख्य केन्द्र नरहड़ (झुंझुनूँ) में स्थित है।
  • नरहड़ पीर का वास्तविक नाम हजरत शक्कर बाबा था।
  • इन्हें बागड़ का धणी कहा जाता है। सलीम चिश्ती इनका प्रमुख शिष्य था।
  • कृष्ण जन्माष्टमी के दिन इनका उर्स लगता है। यहाँ पर पागलों का इलाज किया जाता है।

शेख हमीदुद्दीन नागौरी

  • हमीदुद्दीन नागौरी ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के प्रमुख शिष्य थे।
  • इन्होंने नागौर को अपना केन्द्र बनाकर सूफी मत का प्रचार-प्रसार किया है।
  • राजस्थान में अजमेर के बाद नागौर ही सूफी मत का प्रसिद्ध केन्द्र रहा है।
  • यह अपने शिष्यों के समक्ष कभी भी सांसारिक मुद्दों पर वार्तालाप नहीं करते थे और न ही किसी को करने देते थे।
  • नागौर के पास सुवाल नामक गाँव में खेती करके वे अपना परिवार चलाते थे।
  • वे पूर्णतः शाकाहारी थे और अपने शिष्यों को भी शाकाहार अपनाने का उपदेश देते थे।
  • ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने शेख हमीदुद्दीन नागौरी को सुल्तानुत्तारेकीन (संन्यासियों का सुल्तान) की उपाधि दी थी।
  • इल्तुतमिश ने नागौरी पर श्रद्धा के फलस्वरूप उनके जीवनकाल में ही उनकी खानकाह के मुख्य द्वार पर 1230 ई. में एक बुलन्द दरवाजा बनवाया और उसका नाम अतारकिन का दरवाजा रखा।
  • शेख हमीदुद्दीन नागौरी ने न केवल मानव जाति वरन् पशु-पक्षियों से भी प्रेम का उपदेश दिया और जीव हत्या का विरोध किया।
  • शेख हमीदुद्दीन नागौरी हिन्दी भाषा में वार्तालाप करते थे और पत्रों में हिन्दी के दोहे लिखा करते थे।

काजी हमीदुद्दीन नागौरी

  • नागौर में सुहरावर्दी सूफी सिलसिले के संस्थापक काजी हमीदुद्दीन नागौरी थे।
  • इनका जन्म बुखारा (उज्बेकिस्तान) में हुआ था, लेकिन इनके पिता शेख अताउद्दीन मुहम्मद गौरी के शासन में दिल्ली आ गए।
  • काजी हमीदुद्दीन नागौरी ने नागौर को सुहरावर्दी सूफी शाखा का केन्द्र बनाकर सूफ़ी सिद्धांतों का राजस्थान में प्रचार किया।
  • वे समा (कीर्तन/संगीत) सुना करते थे और उसी में लीन रहते थे।
  • दिल्ली में कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मजार ही इन्हें दफनाया गया।

रसूलशाह

  • रसूलशाह ने रसूलशाही सम्प्रदाय चलाया था। वे अलवर के पास बहादुरपुर के रहने वाले थे। वे संत नियामतुल्ला के शिष्य थे।
  • इस सम्प्रदाय के अनुयायी सिर पर एक सफेद या काला रूमाल बाँधते हैं और शरीर व चेहरे पर भस्म लगाए रहते हैं।
  • इस सम्प्रदाय के लोग ब्रह्मचर्य व्रत का पालन भी नहीं करते हैं।

सूफ़ी शेख इस्हाक मगरिबी

  • सूफ़ी शेख इस्हाक मगरिबी राजस्थान में मगरिबी सिलसिले के संस्थापक थे।
  • बड़ी खाटू (नागौर) इनका प्रमुख केन्द्र था। इनके शिष्यों में शेख अहमद खाटू प्रसिद्ध थे।
    अपने पीर (गुरू) शेख इस्हाक की मृत्यु के पश्चात् शेख अहमद तीर्थ यात्रा पर निकल गए।
  • सरखेज में उनके लिए खानकाह और मदरसा भी बनवाया गया।
  • इनकी विद्वता व धार्मिकता के कारण उन्हें कुतुब-उल-अकताब (ध्रुवतारों का ध्रुवतारा), गंजबख्श (खजाने का दाता) कहते थे।
  • सरखेज की जामा मस्जिद (अहमदाबाद) के पास इनकी मज़ार है।

अन्य संत/सम्प्रदाय

संत/सम्प्रदाय विशेष
संत राजारामजी इनका मुख्य केंद्र शिकारगढ़ / शिकारपुरा (जोधपुर ग्रामीण) में है। संत राजारामजी पटेल जाति के लोग इनमें विशेष आस्था रखते हैं। संत राजाराम ने पर्यावरण संरक्षण के उपदेश दिए थे।
संत प्राणनाथ परनामी संप्रदाय के प्रवर्तक प्राणनाथ का मुख्य केंद्र मध्य प्रदेश के पन्ना में स्थित है। जयपुर के आदर्शनगर में इस संप्रदाय का मंदिर बना हुआ है। इनकी पुस्तक कुजलम स्वरूप है।
भक्त कवि दुर्लभ इन्हें वागड़ का नृसिंह कहा जाता है।
मल्लीनाथजी कुंडा संप्रदाय के संस्थापक
उंदरिया संप्रदाय जयसमंद क्षेत्र में भील जनजाति का संप्रदाय
भूरी बाई अलख मेवाड़ की प्रमुख संत
गवरी बाई इन्हें वागड़ की मीरा कहा जाता है। डूंगरपुर के शासक शिवसिंह ने गवरी बाई को बालमुकुंद मंदिर बनाकर दिया था।
सर्वंगी संप्रदाय इनका केंद्र सीकर में था। इसकी स्थापना 1649 ई. में लक्कड़दास महाराज द्वारा की गई थी।

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