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राजस्थान के संत
संत रामदासजी
- संत रामदास रामस्नेही संप्रदाय की खेड़ापा (जोधपुर ग्रामीण) शाखा के प्रवर्तक थे।
- इनका जन्म भीकमकोर गाँव (फलौदी) में हुआ था।
- संत रामदास मेघवाल जाति के थे।
- इनके पिता का नाम शार्दुल और माता का नाम अणभी था।
- 1752 ई. में सिंहथल (बीकानेर) में संत हरिरामदास से इन्होंने राम नाम का महामंत्र ग्रहण किया।
- इसके बाद संत रामदास खेड़ापा में रहने लगे थे।
- इन्होंने अपने अनुयायियों को गृहस्थ रहने का उपदेश दिया था।
- इनके अनुयायियों के पाँच प्रकार विरक्त, विदेह, परमहंस, प्रवृत्ति और गृहस्थी थे।
- 1798 ई. में खेडापा में इनका देहावसान हुआ।
- इनके बाद इनके पुत्र दयालदास खेड़ापा की गद्दी के उत्तराधिकारी हुए।
- अणर्भवाणी संत रामदास की पुस्तक है।
संत हरिरामदास
- रामस्नेही संप्रदाय की सिंहथल शाखा के प्रवर्तक हरिरामदास का जन्म सिंहथल (बीकानेर) में हुआ।
- इनके पिता का नाम भागचन्द जोशी और माता का नाम रामी था।
- इनकी पत्नी का नाम चांपा और पुत्र का नाम बिहारीदास था।
- इन्होंने 1743 ई. में गुरू जैमलदासजी से दीक्षा ली थी।
- 1778 ई. में सिंहथल में ही इन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
- इनके द्वारा रचित पुस्तक घाघर-निसाणी है।
- इनके प्रमुख शिष्यों में नारायणदास, बिहारीदास, अमीराम, दईदास, रामदास लक्ष्मणदास व आदूराम थे।
संत दरियाव
- रामस्नेही संप्रदाय की रैण (नागौर) शाखा के संस्थापक संत दरियाव का जन्म जैतारण (ब्यावर) में हुआ।
- इनके पिता का नाम मानसा और माता का नाम गीगा था।
- संत दरियाव जाति से पठान धुनियाँ थे।
- इन्होंने 1712 ई. में गुरू पेमदासजी से दीक्षा ली।
- खेजड़ा (मेड़ता व रैण के मध्य) नामक स्थान पर इन्होंने साधना की थी।
- 1758 ई. में रैण में ही इनका देहांत हुआ।
- इनके शिष्य हरखाराम ने इनके समाधिस्थल को पूर्ण करवाया।
- इनके 72 प्रमुख शिष्य और 9 शिष्याएँ थी।
- संत दरियाव रामस्नेही संप्रदाय की चारों शाखाओं में सर्वप्रथम हुए थे।
- इनका पंथ दरियापंथ के नाम से भी जाना जाता है।
संत मावजी
- निष्कलंकी संप्रदाय के प्रवर्तक संत मावजी का जन्म साबला (डूंगरपुर) में हुआ था।
- संत मावजी ने बारह वर्ष की अवस्था में घर छोड़ दिया था।
- माही-सोम नदियों के संगम पर इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था।
- ज्ञान प्राप्ति के दिन (संवत् 1784 माघ शुक्ला एकादशी) वहाँ पर बेणेश्वर धाम की स्थापना की।
- इनके शिष्यों में जातिभेद के बिना सभी व्यक्ति शामिल थे।
- इनके पंथ को निष्कलंक या निकलंक संप्रदाय कहा जाता है।
- मावजी को पाँच ग्रंथों- प्रेमसागर, मेघसागर, सामसागर, रत्नसागर, अनन्त सागर का रचयिता माना जाता है।
- इनके ग्रंथ वाद विवाद की शैली में लिखे गए हैं, जिन्हें चौपड़ा कहा जाता है।
- मावजी के ये चौपड़े केवल दीपावली के दिन ही बाहर निकाले जाते हैं।
- मावजी के अनुयायी उन्हें हिन्दू धर्म का दसवाँ अवतार कल्कि अवतार मानते हैं।
- मावजी ने अछूतों को साध की संज्ञा दी।
- मावजी का मुख्य मंदिर साबला में है जहाँ मावजी की चतुर्भुज मूर्ति बनी हुई है।
- डूंगरपुर में पूंजपुर, बेणेश्वर और दालावाला, मेवाड़ में शेषपुर और बाँसवाड़ा के पालोदा गाँव में मावजी के मंदिर हैं।
- बेणेश्वर धाम पर माघ शुक्ला पूर्णिमा को सोम, जाखम और माही नदियों के त्रिवेणी संगम पर मेला लगता है।
संत पनराज
- संत पनराज का जन्म नगा गाँव (जैसलमेर) में हुआ था।
- काठौड़ी गाँव के ब्राह्मण परिवार की गायों को मुस्लिम लुटेरों से छुड़ाते हुए इन्होंने प्राण दिए।
- इनकी स्मृति में पनराजसर गाँव में वर्ष में दो बार मेला आयोजित होता है।
संत परशुराम देव
- परशुराम देवाचार्य का जन्म ठिकरिया गाँव (सीकर) में गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- इनके गुरू का नाम हरिव्यास देवाचार्य था।
- इन्होंने किशनगढ़ (अजमेर) के पास सलेमाबाद में अखिल भारतीय निम्बार्काचार्य पीठ की स्थापना की।
- इन्होंने राधाकृष्ण की भक्ति करने पर बल दिया था।
- इनके साहित्य में सगुण व निर्गुण धारा का व्यापक समन्वय मिलता है।
- परशुराम देवाचार्य ने सलेमाबाद में एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और जीवित समाधि ली।
- सलेमाबाद में उनकी चरण पादुकाओं की पूजा की जाती है।
संत कृष्णदास पयहारी
- रामानुज या रामानंदी संप्रदाय के संत कृष्णदास पयहारी ब्राह्मण कुल के थे।
- वे जयपुर में गलताजी के पुजारी रहे, जो इनका मुख्य केंद्र है।
- इन्होंने केवल दूध का ही सेवन किया, इसलिए पयहारी के नाम से विख्यात हुए।
- इन्होंने जयपुर महाराजा पृथ्वीराज के गुरू चतुरनाथ को शास्त्रार्थ में पराजित किया था।
- महाराजा पृथ्वीराज और उनकी रानी बालाबाई इनके अनुयायी बन गए थे।
- इन्होंने ब्रज भाषा में जुलगमैन चरित्र, ब्रह्मगीता, प्रेमतत्व निरूपता ग्रंथों की रचना की।
- इनके शिष्य अग्रदास हुए जिन्होंने रैवासा में (सीकर) रामानन्द संप्रदाय की पीठ स्थापित की।
- रैवासा पीठ में राम की भक्ति माधुर्य भाव से की जाती है।
- रामानंदी संप्रदाय में भगवान राम की पूजा रसिक नायक (रसिक संप्रदाय) के रूप में की जाती है।
- सवाई जयसिंह के समय कृष्णभट्ट ने रामरासो नामक पुस्तक लिखी थी। इसमें भगवान श्रीराम व सीता की प्रेम कहानी है।
आचार्य तुलसी
- आचार्य तुलसी का जन्म लाडनूं (डीडवाना-कूचामन) में हुआ था।
- तुलसी ने ग्यारह वर्ष की अवस्था में ही श्रमण जीवन अपना लिया। इनके गुरू का नाम कालुगणि था।
- इन्होंने जन साधारण के नैतिक उत्थान, आध्यात्मिक मूल्यों हेतु अणुव्रत नाम से एक वैचारिक क्रांति की शुरुआत की।
संत बालनंदाचार्य
- संत बालनंदाचार्य की मुख्य पीठ लोहार्गल (नीम का थाना) में स्थित है।
- बालनंदाचार्य अपने पास सेना रखते थे इसलिए लश्कर संत कहा जाता है।
- इन्होंने 52 मूर्तियों को औरंगजेब से बचाया। औरंगजेब के खिलाफ मेवाड़ के राजसिंह व दुर्गादास राठौड़ की सहायता की।
संतदासजी
- गूदड़ सम्प्रदाय के प्रवर्तक संतदासजी थे।
- गूदड़ सम्प्रदाय का नाम उनके द्वारा गूदड़ी के बने कपड़े पहनने के कारण पड़ा था।
- इस संप्रदाय की प्रमुख गद्दी दाँतड़ा (भीलवाड़ा) में है।
संत नवलदासजी
- नवल सम्प्रदाय की स्थापना नवलदासजी ने की।
- संत नवलदास जी का जन्म हरसोलाव (नागौर) में हुआ था।
- इनके पिता का नाम खुशालराम था।
- रामानंद संप्रदाय के संत किरताराम ने इनका नाम नवलराम रखा था।
- इन्होंने निर्गुण एवं निराकार ईश्वर के उपदेश दिए थे।
- संत नवलदासजी ने मारवाड़ी भाषा में उपदेश दिए थे।
- नवलेश्वर अनुभववाणी इनका प्रमुख ग्रंथ है।
- संत नवलदासजी की प्रधान पीठ जोधपुर में है।
संत लालगिरी
- अलखिया सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत लालगिरी का जन्म सुलखनिया (चुरू) में हुआ था।
- इनका मुख्य केंद्र बीकानेर में स्थित है।
- गलताजी में संत लालगिरी की समाधि स्थित है।
- इनका ग्रंथ का नाम अलख स्तुति प्रकाश है।
- इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था।