राजस्थान के लोक नृत्य
बम नृत्य
- बम नृत्य जूनून और जापान का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। बम एक नगाड़ा होता है, रिसर्चर्स लगभग अजारी-तीन फुट और व्यास दो फुट का होता है जिसे दोनों हाथों में मोटे डंडे लेकर ले जाते हैं।
- यह नृत्य पुरुषों द्वारा फाल्गुन में नई सफलता आने की खुशी में किया जाता है।
- इस नृत्य दल में तीन आभूषणों को विभाजित किया जाता है। प्रथम नगाड़ा, थाली, चिमटा, ढोलक आदि वादक वाले कलाकार, दूसरे बांस के ऊपर रंगीन झंडे वाले कलाकार, तीसरे गायक और नर्तक दल जो गीत गाते हुए आनंद और नृत्य करते हैं।
- बम डांस को बमर्सिया डांस भी कहा जाता है।
भवाई नृत्य
- भवाई नृत्य प्रदर्शनी क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है, जिसे महिला और पुरुष दोनों मिलकर करते हैं।
- इस नृत्य में अद्भुत संचालन और लय की विविधता शामिल है।
- इसमें तेज लय के साथ सिर पर 7-8 मटकी नृत्य करना, जमीन पर चढ़ना, जमीन पर पड़े रूमाल को मुंह से उठाना, तलवारों पर नाचना, तलवारों और काँच पर नाचना आदि क्रियाएँ हैं।
- इसमें ढोलक वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है।
- यह शंकरिया, सूरदास, बोरी, ढोलकरी, बीकाजी और ढोलामारू नाच के रूप में प्रसिद्ध है।
- इस नृत्य के प्रचारक बाघजी और मुख्य कलाकार रूपसिंह, दयाराम और तारा शर्मा हैं।
- वर्तमान में इसे एक व्यावसायिक लोकनाट्य का रूप ले लिया गया है।
गींदड़ नृत्य
- होली के दिनों में शेखावाटी क्षेत्र के सुजानगढ़, चूरू, रेस्तरां, लक्ष्मणगढ़, सीकर आदि क्षेत्रों में गींदड़ा नृत्य का आयोजन होता है।
- इसमें गांव के सभी कलाकार के लोग भाग लेते हैं। प्रह्लाद की स्थापना के बाद होली का त्यौहार, जिसे स्थानीय भाषा में ‘डांडा रोपना’ कहा जाता है, यह नृत्यकला है।
- नागाड़ा यह नृत्य का मुख्य वाद्य यंत्र है। इस नृत्य के दौरान ढोल, डफ, चंग आदि वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
- यह पुरुष नृत्य है, जिसमें कुछ व्यक्तिगत महिलाओं के वस्त्र धारण करके भाग लिया जाता है, जिसमें गणगौर भी शामिल है।
- गींदड़ नृत्य में ताल, सुर और नृत्य तीक्ष्णता का समन्वय होता है।
- गींदड़ा नृत्य में साधु, शिकारी, सेठ-सेठानी, भूत-डाकन, दुल्हन-दुल्हन, सरदार, पैशन, पादरी, बाजीगर, जोकर, शिव-पार्वती, राम-कृष्ण, काली आदि विभिन्न प्रकार के स्वांग मिलते हैं।
चारी नृत्य
- किशनगढ़ क्षेत्र (अजमेर) में गुर्जर महिलाएं चरी नृत्य करती हैं।
- इस नृत्य में महिलाएं सिरीज़ पर चरी नृत्य करती हैं। चरी में सिक्के के जलते हुए बीज मिलते हैं।
- इसमें गुर्जर समुदाय की महिलाएं दैनिक जीवन में पानी इकट्ठा करने की कला का चित्रण करती हैं।
- चरी नृत्य के मुख्य कलाकार फ़लकूबाई हैं।
चंग नृत्य
- शेखावाटी में होली के दिनों में पुरुष चंग बजाते हुए वृत्ताकार नृत्य करते हैं।
- चंग बजाते हुए पुरुष गीत की पंक्तियाँ गाते हैं और गीत की पंक्तियाँ गाने के बाद फिर वृत्ताकार नृत्य करते हैं।
- नृत्य की वेशभूषा में धोती या चूड़ीदार पायजामा और कुर्ता या कमीज पहनावा शामिल है।
- सिर पर रूमाल, कमर में कमर बांध और घुंघरू छोड़े जाते हैं।
डांडिया नृत्य
- डांडिया, मारमार का प्रसिद्ध नृत्य है। मारवेस में होली के बाद यह नृत्य कलाकार होता है।
- बीस-पच्चीस पुरुष एक टोली दोनों हाथों में लम्बी-चौड़ी लेकर वृत्ताकार नृत्य करते हैं।
- नृत्य के क्षेत्र के बीच में शहनाई, नगाड़े वाले और गवैये हैं।
- लोक प्रस्तुति गायन के साथ डांसर डांडिया एक लय में गूंजते हुए वृत्तांत के आगे बढ़ते जा रहे हैं।
- मीरा में धमाल गीत, होली गीत या बड़ली के भैरूंजी का गुणगान रहता है।
नाहर नृत्य
- जनजाति जिले के मंडल मुख्यालय में होली के उत्सव के दिन चैत्र कृष्ण त्रयोदशी (रंग तेरस) को अपने पूरे बॉडी पर रुई लपेटकर कलाकार नाहर (शेर) के वेष में नृत्य करते हैं।
- मुगलकाल से यह नृत्य जारी है। वर्ष 2023 में 410वाँ नाहर नृत्य का आयोजन हुआ।
गरबा नृत्य
- गरबा, गुजरात में नवरात्रि के अवसरों पर किया जाने वाला लोकप्रिय नृत्य है।
- गुजरात से सटे हुए राजस्थान के डूंगरपुर और बाँसवाड़ा क्षेत्र में इसका सर्वाधिक प्रचलन है।
- वर्तमान में राजस्थान के कई शहरों और कस्बों में नवरात्रि के अवसर पर गरबा नृत्य का आयोजन किया जाता है।
- रास, डाँडिया, गवरी आदि में भी गरबा का स्वरूप अभिव्यक्त होता है।
- ऐसी मान्यता है कि गरबा का प्रारम्भ दैवी की आराधना से प्रारम्भ हुआ।
- मिट्टी के घड़ों में छिद्र कर और उसमें ज्योति प्रज्ज्वलित कर स्त्रियाँ सिर पर रखकर गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा करके दैवी की आराधना करती थीं। कालान्तर में यह विधि गोलाकार नृत्य में परिणत हो गई थी।
- गरबा के तीन स्वरूप होते हैं। पहले में शक्ति की आराधना है। दूसरे में राधा-कृष्ण और गोप-गोपियों का रास नृत्य है। तीसरे में लोकजीवन का सौन्दर्य पक्ष है जिसमें पनिहारी, नववधू की भावुकता और गृहकार्य में लगी हुई स्त्रियों का चित्रण होता है।
लांगुरिया नृत्य
- कैला देवी के मेले में लांगुरिया नृत्य किया जाता है।
- नवरात्रि के दिनों में लांगुरिया नृत्य होता है। इसमें स्त्री-पुरूष सामूहिक रूप से भाग लेते हैं।
- लांगुरिया हनुमानजी का लोक स्वरूप है।
- नृत्य के दौरान नफीरी तथा नौबत बजाई जाती है।
- इसके दौरान लांगुरिया को संबोधित करके हल्के-फुल्के हास्य-व्यंग्य किए जाते हैं।
अन्य प्रमुख नृत्य
- पेजण नृत्य वागड़ क्षेत्र (डूंगरपुर, बाँसवाड़ा) में लोकप्रिय पुरुषों का नृत्य है। यह दीपावली पर किया जाने वाला नृत्य है।
- बिंदोली नृत्य झालावाड़ क्षेत्र में और डांग नृत्य नाथद्वारा क्षेत्र में होली के अवसर पर किए जाते हैं।
- लुंबर नृत्य जालौर क्षेत्र में होली के अवसर पर महिलाओं द्वारा किया जाता है।
- होली के अवसर पर डूंगरपुर क्षेत्र में चोगोला नृत्य किया जाता है।
- हुरंगा नृत्य भरतपुर क्षेत्र में होली के बाद किया जाता है।
- चरकुला नृत्य भरतपुर क्षेत्र में किया जाता है।
- हिंडौला नृत्य जैसलमेर क्षेत्र में किया जाता है। चरवा नृत्य माली जाति में संतान होने पर चरवा (कांसे का घड़ा) में दीपक रखकर महिलाओं द्वारा किया जाता है।
जनजातीय नृत्य
- भील जनजाति के लोक नृत्य – गैर, गवरी, युद्ध, द्विचक्री, हाथीमना, नेजा, घुमरा, रमणी
- गरासिया जनजाति के लोक नृत्य – वालर, मांदल, लूर, कूद, जवारा, मोरिया, गौर, रायण, गरबा
- कालबेलिया जनजाति के लोक नृत्य – चकरी, शंकरिया, बांगड़िया, पणिहारी, इण्डोणी
- कंजर जनजाति के लोक नृत्य – चकरी, धाकड़, फूंदी
- कथौड़ी जनजाति के लोक नृत्य – मावलिया, होली
- मेव जनजाति के लोक नृत्य – रणबाजा, रतवाई, खारी
- सहरिया जनजाति के लोक नृत्य – शिकारी, सांग, झेला, बिछवा
- बंजारा – मछली
गैर नृत्य
- गैर मेवाड़ व बाड़मेर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है।
- यह होली के दूसरे दिन से अगले पन्द्रह दिनों तक पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
- गोल घेरे में नृत्य किए जाने से इसका नाम घेर और बाद में गैर कहा जाने लगा है।
- नृत्य करने वालों को गैरिया कहते हैं। गैर नृत्य के समय पैरों में बाँधी जाने वाले घुंघरूओं की पट्टी को रमझोल कहा जाता है।
- गैर नृत्य में ढोल, बाँकिया और थाली वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है।
- वादक वृत्त के बीच में रहते हैं।
- पुरूष भक्ति व श्रृंगार रस के गीत गाते हुए नृत्य करते हैं।
- मेवाड़ के गैरिये सफेद अंगरखी, सफेद धोती और सिर पर लाल या केसरिया रंग की पगड़ी पहनते हैं।
- बाड़मेर के अधिकांश गैरिये सफेद आँगी (लम्बा चोगा) पहनते हैं।
- गैर नृत्य का मुख्य केंद्र बाड़मेर का कनाना है।
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