राजस्थान के मेले एवं त्योहार
- राजस्थान प्रदेश के मेले, त्योहार की परम्परा देश में अन्यत्र कहीं नहीं मिलती है।
- प्रत्येक त्योहार, मेला यहाँ के लोक जीवन की किसी किंवदन्ती या ऐतिहासिक कथानक से जुड़ा हुआ है।
- इन मेलों और त्योहारों के अपने गीत और अपनी संस्कृति है, जिससे इनके प्रति जनमानस की गहरी भावात्मक आस्था पाई जाती हैं।
- राजस्थान में मेले एवं त्योहार विक्रमी संवत् कैलेन्डर के अनुसार मनाए जाते हैं।
- विक्रमी संवत् कैलेन्डर चंद्रमा आधारित होता है जिसमें प्रत्येक तीसरे वर्ष एक अतिरिक्त महीना जोड़ा जाता है जिसे अधिकमास कहा जाता है।
- हिन्दू महीने का प्रारम्भ पखवाड़ा (कृष्ण पक्ष) बुदी एवं अंतिम पखवाड़ा (शुक्ल पक्ष) सुदी कहलाता है।
- इसमें चंद्रमा की 16 कलाओं के आधार पर दो पक्ष (कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष) का एक मास होता है।
- प्रथम पक्ष अमांत व द्वितीय पक्ष पूर्णिमांत कहलाता है।
- हिंदू त्योहार श्रावण शुक्ल तृतीया (छोटी तीज) से शुरू होते है तथा चैत्र शुक्ल तृतीया (गणगौर) पर समाप्त हो जाते हैं इसलिए जनमानस में एक किंवदन्ती प्रचलित है- ‘तीज तीवारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर’
राजस्थान त्योहार
जैन धर्म के त्योहार
महावीर जयन्ती
- चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी की जयन्ती मनाई जाती है।
- यह दिन महावीर स्वामी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन करौली जिले में महावीरजी का मेला लगता है।
पर्युषण पर्व
- जैन धर्म में पर्युषण महापर्व कहलाता है।
- दिगम्बर मत वाले इस पर्व को भाद्रपद शुक्ला पंचमी से चतुर्दशी तक मनाते हैं।
- श्वेताम्बरमत के अनुयायी इसे भाद्रपद कृष्णा द्वादशी से भाद्रपद शुक्ला पंचमी तक मनाते हैं।
- इस पर्व का अंतिम दिन संवत्सरी कहलाता है।
रोट तीज
- भाद्रपद शुक्ला तृतीया को जैन मतानुयायी रोट तीज मनाते हैं। इस दिन खीर व मोटी मिस्सी रोटी बनाई जाती है।
सुगंध दशमी (धूप दशमी)
- भाद्रपद शुक्ला दशमी को जैन मंदिरों में सुगंधित द्रव्यों द्वारा सुगंध की जाती है। इसे सुगंध दशमी कहा जाता है।
दशलक्षण पर्व
- भाद्रपद शुक्ला पंचमी से पूर्णिमा तक (दिगम्बर मतानुयायी) मनाया जाता है। यह आत्मशुद्धि से संबंधित होता है।
पड़वा डोक (क्षमावणी)
- यह दिगम्बर जैन मतानुयायियों का क्षमायाचना पर्व है, जो आश्विन कृष्णा प्रतिपदा को मनाया जाता है।
- इस दिन जैन श्रद्धालु एक दूसरे से अतीत की भूलों के लिए क्षमा याचना करते हैं। इसे पड़वा ढोक भी कहते हैं।
इस्लामी त्योहार
इंदुलफितर
- रमजान के महीने में तीस दिन रोजे रखने के बाद इंदुलफितर का त्योहार मनाया जाता है।
- इस दिन सामूहिक नमाज पढ़ी जाती है और खुदा से सुख-शांति और समृद्धि के लिए दुआएँ माँगते हैं।
- भाईचारे को बढ़ाने वाले इस त्योहार को मीठी इंद या सिवैयों की ईद भी कहा जाता है।
ईदुलजुहा
- रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के बाद यह त्योहार मनाया जाता है।
- इस्लामिक मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहीम अपने पुत्र हजरत इस्माइल को इस दिन खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे, तो खुदा ने उनके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह त्योहार मनाया जाता है।
- इंदुलजुहा के महीने में ही हजयात्रा की जाती है।
- सामान्यतः इसे बकरा ईद भी कहा जाता है।
शब-ए-बारात
- इस्लामी कैलेण्डर के अनुसार शाबान महीने की चौदह तारीख को शब-ए-बारात का पर्व मनाया जाता है।
- इस दिन पैगम्बर मुहम्मद की फरिश्तों के माध्यम से अल्लाह से मुलाकात हुई थी।
- इस रात्रि इस्लाम के अनुयायी अल्लाह की इबादत करते हैं व अपने अपराधों के लिए क्षमा माँगते हैं।
शब-ए-कद्र
- रमजान के महीने की सताइसवीं रात्रि शब-ए-कद्र के रूप में मनाई जाती हैं।
- इस्लामिक मान्यता के अनुसार इस रात को जिबरिल नाम के फरिश्ते के द्वारा पैगम्बर मुहम्मद के माध्यम से कुरान की आयतों को उतारा गया था।
मुहर्रम
- मुहर्रम से हिजरी सन् की शुरूआत होती है।
- चाँद दिखने पर दस दिवसीय मुहर्रम का प्रारम्भ होता है।
- पैगम्बर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की कर्बला में शहादत की स्मृति में मुहर्रम मनाया जाता है।
- इस दिन ताजिये निकाले जाते हैं।
बारावफात
- पैगम्बर मोहम्मद के जन्म दिन पर बारावफात या ईदुलमिलादुन्नबी का त्योहार मनाया जाता है।
अन्य धर्मों के त्योहार
लोहड़ी
- मकर संक्रांति को पूर्व संध्या पर सिक्ख समाज के लोग यह त्योहार मनाते हैं।
- रात्रि में एक जगह सामूहिक रूप से अग्नि जलाकर उसे तिल एवं मिठाइयाँ अर्पित की जाती हैं।
- किसान रबी की फसल काटकर घर आने की खुशी में यह त्योहार मनाते हैं।
- विवाहित पुत्रियों को घर बुलाकर उनको भेंट एवं सम्मान दिया जाता है।
वैशाखी
- गुरु गोविन्दसिंह ने 13 अप्रैल, 1699 को आनन्दपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी।
- उसी की स्मृति में सिक्ख धर्म के अनुयायी प्रतिवर्ष 13 अप्रैल को वैशाखी पर्व मनाते हैं।
- ऐसा भी माना जाता है कि वैशाखी पर्व रबी की फसल के पक कर घर आने की खुशी में मनाया जाता है।
गुरु नानक जयंती
- कार्तिक पूर्णिमा को सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक के जन्म के रूप में गुरु नानक जयंती मनाई जाती है।
- गुरुद्वारों में सजावट और गुरुवाणी का पाठ किया जाता है।
गोविन्द सिंह जयंती
- सिक्खों के 10 वें गुरु गोविन्दसिंह का जन्म पौष शुक्ला सप्तमी को उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता है।
थदड़ी
- सिन्धी समुदाय भाद्रपद कृष्णा सप्तमी को थदड़ी मनाते हैं।
- इस दिन एक दिन पहले बना हुआ ठण्डा भोजन किया जाता है।
- इस दिन महिलाएँ पीपल वृक्ष पर चाँदी की मूर्ति रखकर उसकी पूजा करती है।
- इसे बड़ी सातम भी कहते हैं।
चेटीचण्ड
- चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को वरुणदेव के अवतार झूलेलाल का जन्मदिन सिंधी समुदाय चेटीचण्ड के रूप में मनाता है।