इस क्षेत्र के मीणा व गुर्जरों की भी यह ईष्ट देवी हैं।
त्रिकूट पर्वत (करौली) पर कैला देवी का मंदिर स्थित हैं।
चैत्र शुक्ला अष्टमी को यहाँ इनका लक्खी मेला लगता है। मेले के दौरान लांगुरिया गीत गाये जाते है।
मुख्य मंदिर संगमरमर का बना हुआ है।
इनके मंदिर के सामने बोहरा भक्त की छतरी बनी हुई हैं, जहाँ तांत्रिक विद्या से बच्चों का इलाज किया जाता हैं।
करौली के महाराजा गोपालसिंह ने कैलादेवी के मंदिर का नया भवन बनवाया।
इनको हनुमानजी की माता अंजनी तथा श्रीकृष्ण की बहन माना जाता है।
करणी माता
करणी माता का जन्म सुआप (फलौदी) में 1387 ई. में हुआ था।
करणी माता का बचपन का नाम रिद्धि बाई था।
करणी माता विवाहिता थी, मगर आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत निभाया था।
इनका मुख्य मंदिर बीकानेर जिले के नोखा के देशनोक गाँव में स्थित है।
करणी माता चारणी देवी भी कहलाती है।
करणी माता को दाढ़ी वाली डोकरी भी कहा जाता है।
चील करणी माता का प्रतीक है।
देशनोक की स्थापना 1419 ई. में करणी माता ने की थी।
जोधपुर स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव करणी माता ने ही रखी थी।
राव बीका ने करणी माता की कृपा से ही बीकानेर में राठौड़ राज्य स्थापित किया था।
इसे चूहों वाला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
करणी माता के मंदिर में चारों ओर चूहे घूमते हुए दिखाई देते हैं।
सफेद चूहों को काबा कहा जाता है।
मंदिर में सफेद चूहे का दिखाई देना भाग्योदय का संकेत माना जाता है।
अलवर के महाराजा बख्तावर सिंह, बीकानेर के शासक सूरतसिंह, डूंगरसिंह एवं गंगासिंह ने मंदिर की भव्यता बढ़ाने के लिए कई कार्य करवाये थे।
चैत्र एवं आश्विन माह की नवरात्रों में करणी माता के मंदिर में विशाल मेले आयोजित होते है।
यहाँ सावन-भादो कढ़ाई स्थित है।
नेहड़ीजी का मंदिर (देशनोक) में करणीमाता स्वयं रहती थी तथा तेमडेराय माताजी की पूजा करती थी।
नागणेची देवी
नागणेची देवी राठौड़ों की कुल देवी हैं। इन्हें राठेश्वरी माता भी कहा जाता है।
राव धूहड़ के शासनकाल में लूम्ब नामक एक ब्राह्मण कन्नौज से राठौड़ों की कुलदेवी चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति लेकर मारवाड़ आया, जिसे धूहड़ ने नागाणा गाँव में स्थापित किया।
नागौर दुर्ग में नागणेची की प्रतिमा स्थापित है। बीका ने बीकानेर में 18 भुजाओं वाली नागणेची देवी की प्रतिमा स्थापित की।
जीण माता
सीकर जिले के रेवासा गाँव के समीप हर्ष की पहाड़ी पर जीण माता का प्राचीन मंदिर स्थित है।
जीण माता के मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान प्रथम के सामंत हट्टड मोहिल ने करवाया था।
जीण माता की अष्टभुजी प्रतिमा के समक्ष घी एवं तेल के दो अखण्ड दीपक जलते रहते हैं।
पहले इन दीपकों की व्यवस्था अजमेर के चौहान वंश और बाद में जयपुर राज्य द्वारा की जाने लगी।
जीण माता के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि जीण एवं हर्ष नामक भाई-बहन ने यहाँ कठोर तपस्या की थी।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने जीण को देवी के रूप में पूजी जाने का आशीर्वाद दिया।
जीण माता चौहान कुल की ईष्ट देवी रही है।
चैत्र एवं आश्विन माह के नवरात्रों में यहाँ मेला लगता है।
जीण माता का गीत सबसे लम्बा है, जिसे कनफटे जोगी डमरू एवं सारंगी के साथ गाते हैं।
जीण माता को मधुमक्खियाँ की देवी कहा जाता है।
शीतला माता
जयपुर ग्रामीण जिले की चाकसू तहसील में शील की डूंगरी गाँव में शीतला माता का मंदिर स्थित है।
यहाँ चैत्र कृष्णा अष्टमी को मेला लगता है। इस मेले में दूर-दराज के ग्रामीण रंगीन कपड़ों में सजे-धजे, अपनी सुसज्जित बैलगाड़ियों से आते हैं इसलिए इस मेले को बैलगाड़ी मेले के नाम से भी जाना जाता है।
माधोसिंह द्वितीय ने मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था।
जयपुर के महाराजा माधोसिंह प्रथम ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
मंदिर में माता की अनगढ़ मूर्तियाँ हैं जिन पर दाने निकले हुए हैं।
शीतला माता एकमात्र देवी जिनकी खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है। चेचक के प्रकोप से बचाने के लिए शीतला माता की पूजा की जाती है इसलिए चेचक रक्षक देवी कहा जाता है। > > शीतला माता के नाम पर चैत्र कृष्णा सप्तमी को घरों में विभिन्न प्रकार की खाद्य वस्तुएँ बनाई जाती है और चैत्र कृष्णा अष्टमी को सुबह माता को ठण्डे पकवानों का भोग लगाकर पूजा की जाती है जिसे बास्योड़ा भी कहा जाता है।
कुम्हार जाति के लोग इसके पुजारी होते है।
बाँझ महिलाएँ संतान प्राप्ति हेतु शीतला माता की पूजा करती है।
सकराय माता
नीम का थाना जिले के उदयपुरवाटी में मलयकेतु (मालकेतु) पहाड़ी पर सकराय माता का मंदिर स्थित है।
इस मंदिर का नाम शंकरदेवी था, जिसको लोग सकराय माता कहते हैं।
सकराय माता के मंदिर में दो देवियों शाकम्भरी और काली की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित हैं।
सकराय माता को दयालु और कृपालु माना जाता है।
यह चौहानों की ईष्ट देवी तथा खंडेवालों की कुलदेवी है।
जयपुर ग्रामीण के सांभर तथा उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में भी इसके मंदिर बने हुए है।
दधिमाता
नागौर जिले के गोठ व मांगलोद गाँवों को सीमा पर दधिमाता का मंदिर स्थित है।
दाधीच ब्राह्मण इस मंदिर को अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित दधिमाता मंदिर मानते हैं।
प्रतिवर्ष नवरात्रि में यहाँ मेले का आयोजन होता है।
शिलादेवी माता
आमेर के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी शिलादेवी का मंदिर आमेर के किले में स्थित है।
जयपुर के महाराजा मानसिंह प्रथम शिलादेवी की प्रतिमा पूर्वी बंगाल से लाए थे।
वर्तमान मंदिर का निर्माण सवाई मानसिंह द्वितीय ने करवाया था।
नवरात्रि में यहाँ षष्ठी व अष्टमी पर मेले का विशेष आयोजन होता है।
आशापुरा माता
जालौर के चौहान शासकों की कुलदेवी आशापुरा देवी को आशा पूर्ण करने वाली देवी माना जाता है।
जालौर जिले के मोदरा में आशापुरा माता मंदिर के प्रांगण के कदम्ब वृक्ष भी लोगों की श्रद्धा के केन्द्र है।
चौहानों के साथ ही कई अन्य जातियाँ भी आशापुरा देवी को अपनी कुलदेवी मानती है।
होली के तीसरे दिन आयोजित होने वाले मेले में भाग लेने के लिए हजारों श्रद्धालु देश के विभिन्न भागों से पहुँचते हैं।
पाली जिले के नाडोल में भी आशापुरा माता का मंदिर स्थित है।
सच्चियाय माता
जोधपुर ग्रामीण जिले के ओसियाँ में सच्चियाय माता का मंदिर स्थित है।
यह प्राचीन मंदिर आठवीं-नवीं शताब्दी का है, जिसे बारहवीं शताब्दी में पुनः बनाया गया।
इस मंदिर का निर्माण गुर्जर प्रतिहारों ने महामारू शैली में करवाया था।
सच्चियाय माता के मंदिर में काले पत्थर की महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है।
मंदिर के कोनों में विष्णु, शिव, सूर्य व गणेशजी के छोटे-छोटे मंदिर हैं।
सच्चियाय माता को ओसवालों की कुलदेवी माना जाता है।
राणी सती
झुंझुनू की राणी सती को भी देवी के रूप में पूजा जाता है।
राणी सती का मूल नाम नारायणी बाई था।
अपने पति तनधनदास की हिसार नवाब के सैनिकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद पति की देह के साथ सती हो गई थी।
झुंझुनूं में राणी सती का विशाल मंदिर बना हुआ है।
राणी सती दादी सती के नाम से भी विख्यात हैं।
भाद्रपद अमावस्या को यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता था।
स्वांगिया माता
स्वांगिया माता का मुख्य मंदिर भादरिया (जैसलमेर) में बना हुआ है।
स्वांगिया माता जैसलमेर के भाटियों की कुलदेवी हैं।
सुगन चिड़ी स्वांगिया माता का प्रतीक है।
जैसलमेर राज्य के राज चिह्न में मुड़ा हुआ भाला इनके हाथ में दिखाया गया है।
जैसलमेर दुर्ग के राजप्रासाद में भी स्वांगिया माता का मंदिर स्थित है।
सुंधा माता
सुंधा माता का मुख्य मंदिर भीनमाल (जालौर) में स्थित है।
जसवन्तपुरा की पहाड़ियों में चामुण्डा माता का मंदिर बना हुआ है, जिन्हें सुंधा माता के नाम से जानते हैं।
यहाँ पर राज्य का प्रथम रोप-वे स्थापित किया गया था।